बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
सातवीं शताब्दी में अरब में एक नए मत का जन्म हुआ जिसे 'इस्लाम' नाम दिया गया।
मध्यकाल में भारत पर पहला आक्रमण मुसलमानों ने किया।
यह आक्रमण 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में महमूद गजनवी ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया। हुआ।
मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान का पराजित कर भारत में अपना राज्य स्थापित किया।
औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. तक मुसलमानों का शासन रहा।
मुस्लिम शासनकाल में भारत में एक नई शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ जिसे 'मध्यकालीन अथवा मुस्लिम शिक्षा प्रणाली' कहा गया।
मुस्लिम शासकों ने नालन्दा और विक्रमशिला जैसे उच्च शिक्षा केन्द्रों का नष्ट कर दिया।
मध्यकाल में मुस्लिम धर्म एवं संस्कृति पर आधारित नवीन शिक्षा प्रणाली का बीजारोपण किया गया।
मध्यकालीन शिक्षा पूरी तरह से शासक वर्ग पर आधारित थी।
मुस्लिम शासन काल में गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैय्यद, लोदी तथा मुगलवंशों का उदय और अन्त हुआ।
वे मुसलमान शासक जिनका उद्देश्य लूटमार करना तथा विजय प्राप्त करना था उनमें महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, तैमूर और नादिरशाह आदि प्रमुख थे।
वे मुसलमान शासक जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक प्रयास किये वे फिरोज तुगलक, बलबन रजिया सुल्तान आदि थे।
मध्यकाल में वैदिक व बौद्ध धर्म की भाँति शिक्षा को भी महत्व दिया गया।
कुरान शरीफ के अनुसार तालीम को 'निजात (मुक्ति) का साधन माना गया है।
मुहम्मद साहब ने कहा कि दान में धन देने से बेहतर है कि अपने पुत्रों को शिक्षा दी जाए।
मुहम्मद साहब के अनुसार विद्यार्थी की कलम की स्याही शहीदों के खून से अधिक पाक है। मध्यकाल में धर्म प्रचार को सबाब (पुण्य) का कार्य माना गया है।
मकतबों में कुरान की शिक्षा दी जाती थी।
मदरसों में इस्लामी दर्शन, इस्लामी साहित्य और धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
इस्लामिक शिक्षा का उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार ज्ञान का प्रसार, मुस्लिम संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार करना था।
पुरातन इस्लामिक नियम कानून को 'शरियत' कहते हैं।
मकतबों में हिन्दू बालक भी शिक्षा प्रदान कर सकते थें।
बिसमिल्लाह की रस्म में मौलबी साहब कुरान की भूमिका एवं उसका 55वाँ व 87वाँ अध्याय पढ़ते थें।
मकतबों में वर्णमाला के अक्षरों का ज्ञान व कुरान की आयतें कठस्थ कराई जाती थीं।
मकतबों के अतिरिक्त खानाकाहों और दरगाहों में भी प्राथमिक शिक्षा दी जाती थी।
शिक्षा देने का कार्य मौलवी करते थे।
मदरसों का पाठ्यक्रम 10 से 12 वर्ष का था।
पाठ्यक्रम के मुख्यतः दो प्रकार थे लौकिक पाठ्यक्रम और धार्मिक पाठ्यक्रम |
धार्मिक पाठ्यक्रम के अन्तर्गत कुरान, मुहम्मद साहब की परम्परा, इस्लामी इतिहास, इस्लामी कानून तथा सूफी मत के प्रमुख सिद्धान्त पढ़ाये जाते थे।
अरबी-फारसी साहित्य एवं व्याकरण दर्शन, तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विषयों का ज्ञान कराया जाता था।
मदरसों में वास्तुकला, चित्रकला तथा संगीत कला की उच्च कोटि की शिक्षा दी जाती थी।
अकबर ने हिन्दी को तथा औरंगजेब ने उर्दू को प्रोत्साहन देने का सफल प्रयास किया था।
मध्यकाल में संस्कृत और पाली आदि भाषाओं का शिक्षा पद्धति में कोई स्थान नहीं था।
शिक्षा समाप्ति के बाद अद्वितीय प्रतिभा प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति को 'फाजिल', 'आलिम' और 'काबिल' की उपाधि प्रदान की जाती है।
अनुशासन भंग करने वाले छात्रों को कठोर दण्ड दिया जाता था।
मदरसों के साथ छात्रावास बने होते थे तथा गुरु अपने शिष्यों को अपने ही परिवार का एक सदस्य मानते थे।
भारत में मुस्लिम शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र आगरा, दिल्ली, लाहौर, स्यालकोट, मुल्तान, जालघट, मालवा, अजमेर, गुजरात, हैदराबाद, बीजापुर, जौनपुर फिरोजाबाद और लखनऊ थे।
मुस्लिम काल में प्रमुख विदूषी महिलाओं में रजिया सुल्तान बाबर की पुत्री गुलबदन एक सफल लेखिका थी। इनके अतिरिक्त मुमताज महल, जहाँआरा, सुल्ताना सलीमा तथा नूरजहाँ आदि महिलायें प्रमुख रहीं।
सैनिक शिक्षा में अश्वारोहण, भाला चलाना, तीर चलाना, तोप चलाना तथा किले की घेराबन्दी करना सिखाया जाता था।
चिकित्साशास्त्र की प्रमुख पुस्तकों में मदानुश शिक्षा - ए - सिकन्दरी, तूहफल- अली मोमिन, तलिफ-ए- शरीफ तथा दस्तूर - उल - अतिब्बा है।
मुस्लिम शासन काल में हस्तकलाओं में हाथीदाँत का काम आभूषण निर्माण, पच्चीकारी, रेशम व जरी का काम, मलमल बुनना, रथ तथा युद्ध सामग्री बनाना आदि हस्तकलायें प्रचलित थीं।
मध्यकाल में वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों में आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला तथा फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा आदि प्रमुख हैं।
मध्यकाल में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी।
इस काल के प्रमुख इतिहासकारों में अबुल फजल, बदायूँनी, फिरिश्ता, जेबुन्निसा बर्नी तथा दारा शिकोह प्रमुख थे।
मध्यकाल में मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य हिन्दू संस्कृति एवं शिक्षा को नष्ट करके इस्लामिक शिक्षा एवं सिद्धान्तों का प्रचार एवं प्रसार करना था।
मध्यकाल में मुस्लिम शासकों ने 550 वर्षों तक शासन किया।
कुछ मुस्लिम शासकों में बख्तियार, अलाउद्दीन, फिरोज एवं औरंगजेब आदि का लक्ष्य हिन्दू संस्कृति को व शिक्षा को नष्ट करना था।
कुछ मुस्लिम शासकों में मुहम्मद तुगलक, अकबर एवं शाहजहाँ आदि शिक्षा प्रेमी का लक्ष्य राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय स्थापित करके एक नवीन राष्ट्र के निर्माण हेतु शिक्षा का प्रसार करना था।
मध्यकाल में धर्म का प्रचार करना (तबलीग) मुसलमानों में धार्मिक कार्य माना जाता है।
मुसलमानों में धार्मिक कट्टरता का समावेश था।
मकतबों में प्रवेश के समय 'विसमिल्लाह' की रस्म होती थी, जिसका शाब्दिक अर्थ 'शुभारम्भ करना था।
मकतबों की शिक्षण विधि मौखिक थी। रटने पर विशेष बल दिया जाता था।
मदरसों में शिक्षा का माध्यम फारसी था, परन्तु मुसलमानों के लिए अरबी का अध्ययन भी अनिवार्य था।
आगरा व रामपुर का मदरसा चिकित्सा शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
मध्यकालीन शिक्षा में शिक्षा की व्यावहारिकता पर विशेष बल दिया जाता था।
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